Tuesday, May 15, 2012

हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा बना शमशेर का स्‍थायी घर


विश्‍वविद्यालय को मिला दुर्लभ पाण्‍डुलिपियों के अलावा शमशेर साहित्‍य का स्‍वत्‍वाधिकार भी, आज का दिन मील का पत्‍थर -कुलपति
वर्धा, हिंदी के सुपरिचित कवि केदार नाथ सिंह ने कहा है कि शमशेर बहादुर सिंह विलक्षण दोआब के कवि हैं। उनकी रचनाओं में हिंदी और उर्दू की दोभाषिक संस्‍कृतियां मिलती हैं। शमशेर जितने हिंदी के कवि थे उतने ही उर्दू के। डॉ. केदार नाथ सिंह महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के स्‍वामी सहजानंद सरस्‍वती संग्रहालय में कालजयी कवि शमशेर बहादुर सिंह की 19वीं पुण्‍यतिथि पर आयोजित गरिमामय समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस समारोह में प्रसिद्ध लेखिका डॉ. रंजना अरगड़े ने शमशेर की प्रकाशित-अप्रकाशित रचनाओं की पांडुलिपियां, चित्रकृतियां और उनके निजी उपयोग की सामग्री तथा शमशेर की रचनाओं की कापीराइट विश्‍वविद्यालय को सौंपी।   
       डॉ. केदार नाथ सिंह का कहना था कि शमशेर ने एक नयी काव्‍य भाषा दी। उर्दू के कई प्रतीक शमशेर की हिंदी कविता में रच-बस गए। शमशेर ने अपनी परंपरा खुद बनायी। परंपरा के तत्‍व, राग, संगीत को मिलाकर उन्‍होंने विलक्षण दोआब की भाषा रची। शमशेर ने एक नयी काव्‍य भाषा दी। डॉ. सिंह ने शमशेर पर अपने कई संस्‍मरण भी सुनाए। उन्‍होंने शमशेर की सारी सामग्री विश्‍वविद्यालय को देने के लिए रंजना अरगड़े के प्रति आभार प्रकट किया और कहा कि  इन पाण्‍डुलिपियों में एक नहीं, कई शमशेर छिपे हुए हैं। कवि और उपन्‍यासकार डॉ. गंगा प्रसाद विमल का कहना था कि इस विश्‍वविद्यालय का संग्रहालय हिंदी का अदभुत संग्रहालय बनने की ओर निरंतर आगे बढ़ रहा है। शमशेर की इतनी सामग्री विश्‍वविद्यालय में आने के बाद लक्ष्‍य प्राप्ति में बहुत मदद मिलेगी। प्रसंगवश बता दें कि विश्‍वविद्यालय के संग्रहालय में कई प्रमुख लेखकों की पाण्‍डुलिपियां सुरक्षित हैं। वरिष्‍ठ कथाकार विजय मोहन सिंह का कहना था कि शमशेर शब्‍दों में नहीं चित्रों में बोलते थे। वरिष्‍ठ आलोचक डॉ. निर्मला जैन का कहना था कि शमशेर की सारी सामग्री हिंदी विश्‍वविद्यालय के पास आने से उसकी बेहतर ढंग से रक्षा हो सकेगी और दूसरे लेखक भी अपनी पाण्‍डुलिपियां इस विश्‍वविद्यालय को देने की ओर प्रेरित होंगे। डॉ. जैन का कहना था कि शमशेर की रचनाओं में कोई पूर्व नियोजित संरचना नहीं मिलती। इसकी पुष्टि के लिए उन्‍होंने नामवर सिंह द्वारा लिए गए शमशेर के साक्षात्‍कार को उद्धृत किया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वरिष्‍ठ कथाकार विजय मोहन सिंह का कहना था कि शमशेर शब्‍दों में नहीं चित्रों में बोलते थे। कवि एवं फिल्‍मकार नरेश सक्‍सेना ने कहा  कि शमशेर शिल्‍प सचेत सौंदर्य के अप्रतिम कवि हैं। आलोचक शंभु गुप्‍त ने कहा  कि शमशेर जटिल नहीं, सरल कवि हैं।
          इस अवसर पर अपने भावविह्वल संबोधन में डॉ.रंजना अरगड़े ने कहा कि शमशेर की सारी सामग्री हिंदी विश्‍‍वविद्यालय को सौंप कर और कॉपीराइट के बारे में कुलसचिव डॉ. के. जी. खामरे के साथ एमओयू पर दस्‍तखत करके वे अपने को जितना मुक्‍त अनुभव कर रही हैं, उतना ही खालीपन भी महसूस कर रही हैं। कार्यक्रम की अध्‍यक्षता करते हुए कुलपति विभूति नारायण राय ने कहा कि संग्रहालय के लिए आज का दिन मील का पत्‍थर है। भारत में शमशेर के साहित्‍य पर जो भी शोध करेगा, उसे यहां आना पडेगा। उन्‍होंने घोषणा की कि शमशेर की इस सामग्री की प्रदर्शनी कोलकाता, इलाहाबाद समेत देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में भी लगायी जाएगी। उन्‍होंने कहा कि रंजना अरगड़े ने शमशेर की जो पाण्‍डुलिपियां विश्‍वविद्यालय को सौंपी हैं, उनमें एक तिहाई अप्रकाशित है और उन्‍हें पुस्‍तक रूप में प्रकाशित करने के पहले विश्‍वविद्यालय की पत्रिका बहुवचन में प्रकाशित किया जाएगा। कुलपति ने ऐलान किया कि शमशेर की रचनावली रंजना अरगड़े के संपादन में निकाली जाएगी। प्रसंगवश बता दें कि विश्‍वविद्यालय के संग्रहालय में कई प्रमुख लेखकों की पाण्‍डुलिपियां सुरक्षित हैं। इस अवसर पर शमशेर पर एक फिल्‍म भी दिखायी गयी। कार्यक्रम के आखिर में प्रतिकुलपति प्रो. . अरविंदाक्षन ने धन्‍यवाद ज्ञापन किया। समारोह का अत्‍यंत ही प्रभावी संचालन प्रो. सुरेश शर्मा ने किया।